Thursday, 3 March 2016

जनाज़े को कन्धा देना इबादत का काम ह

जनाज़े को कन्धा देना
इबादत का काम है

हर मुसलमान को चाहिए के इस इबादत मे शामिल हो

सरकारे दो आलम सलल्लाहो अलैहे
वसल्लम ने खुद हज़रात सअाद बिन
मआज़ रदिअल्लाहो तआला अन्हो के
जनाज़े को उठाया था

सुन्नत यह है के एक के बाद एक
जनाज़े के चारो पायो को कन्धा दे
और
कन्धा देते वक्त दस-दस कदम चले
और
पूरी सुन्नत यह है के कन्धा देनेकी
शुरुआत दाई बाज़ू सर की तरफ से
करके दाई तरफ पैर की तरफ
और
फिर बायीं बाज़ू सर
और
फिर पैर की तरफ कन्धा दे

कन्धा देते वक्त दस-दस कदम चले
इस तरह चार कंधे पुरे होने पर
चालीस कदम मुकम्मल हो जायेगे
✨✨
हदीसे पाक में आया है कि
✨✨✨✨✨✨✨
जो बंदा जनाज़े को उठाये चालीस
कदम चलता है अल्लाह तआला
उस बंदे के चालीस कबीरह गुनाह
माफ़ फ़रमा कर उस बंदे की बख्शीश
मग़फ़ेरत फरमा देता है
✨✨✨✨✨✨✨
जनाज़े के साथ चलने वालों के लिए
अफज़ल यह है कि जनाज़े के पीछे चले
दांए बांए या आगे न चले
✨✨✨✨✨✨✨
(फतावा आलमगीरी)
✨✨✨✨✨✨✨
जनाज़े के साथ पैदल चलना अफज़ल है
अगर सवारी पर हो तो आगे जाना
मकरूह है
और
अगर आगे रहना हो तो फिर अपनी
सवारी को दूर रखे
✨✨✨✨✨✨✨
(फतावा आलमगीरी)
✨✨✨✨✨✨✨
जो बँदा जनाज़े के साथ शामिल हो तो
फिर उसे नमाज़े जनाज़ा पढ़े बगैर
वापस नहीं जाना चाहिए
✨✨✨✨✨✨✨
अगर जल्दी हो तो बाद नमाज़े जनाज़ा
के मैयत के वाली की इज़ाज़त लेकर
जा सकता है
✨✨✨✨✨✨✨
मय्यत दफ़न हो जाने के बाद इज़ाज़त
की ज़रूरत नहीं है
✨✨✨✨✨✨✨
(फतावा आलमगीरी)
✨✨✨✨✨✨✨
जनाज़े के साथ चलने वालों के लिए
दुनयवी बाते करना या हसना मना है
✨✨✨✨✨✨✨
साथ चलने वालों को यह गौरो फिक्र
करना चाहिए के एक ना एक दिन
मुझे भी इसी तरह इस दुनीयां-ए-फानी
छोड़कर जाना है
✨✨✨✨✨✨✨
ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं
न मालूम कब मौत आजाए
मुझे भी जितना हो सके आखरत की
तैयारी में लग जाना चाहिए
✨✨✨✨✨✨✨

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